मध्य प्रदेश के बी.जे.पी नेता और कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय अपने बयान पर खुद उस वक़्त फँस गए जब टाइम्स नाओ ( Times Now ) के
मुख्य सम्पादक - अर्नब गोस्वामी के शो न्यूजआवर ( Newshour
) में पूछे गए सवालों में उलझे हुए पाए गए। सवालों का केंद्र बिंदु कैलाश
विजयवर्गीय का वो विवादास्पत बयान था जो उन्होंने मध्य प्रदेश में एक
कार्यक्रम के दौरान दिया। विजयवर्गीय का कहना था कि अगर आज की महिलाएं,
सीता की तरह अपनी मर्यादा (लक्ष्मण रेखा ) को पार करेगी तो रावण उनका
अपहरण कर ले जाएगा।
उपरोक्त कार्यक्रम के दौरान विजयवर्गीय काफी
उग्र और असहज नज़र आये पर उन्होंने, अपने बयान के लिए माफ़ी नहीं मांगी और
अपनी बात को सही ठहराते रहे। अब आपको तय करना है की ऐसी विकृत्त सोच रखने
वालों को क्या सज़ा देनी चाहिए। इस मानसिकता का शिकार सिर्फ विजयवर्गीय ही
नहीं बल्कि अन्य कई नेता और इस देश की महान हस्तियाँ हैं। आर.एस.एस मुखिया
मोहन भागवत का भारत और इंडिया वाला वो बयान जिसमें उनका कहना है कि
बलात्कार के मामले इंडिया में ज्यादा पाए जातें हैं भारत में नहीं। अब आप
ही इनसे पूछिए की ये कहाँ रहतें है भारत में या इंडिया में ?
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सुपुत्र अभिजीत मुखर्जी का वो बयान की
प्रदर्शनों में स्टूडेंट्स नहीं बल्कि महिलाएँ सज धज कर अपने सौंदर्य का
प्रदर्शन करने अपने बच्चों सहित आती हैं उनकी अपरिपक्व मानसिकता
को दर्शाता है।
हमारे देश में इन जैसे लोगों के विवादास्पत बयानों को देने वालों की कमी नहीं ज़रा इन पर नज़र दौड़ाइए ;
कांग्रेस
सांसद संजय निरुपम ने हाल ही में भाजपा सांसद स्मृति ईरानी के लिए कहा कि
राजनीति में आये स्मृति को सिर्फ चार दिन हुएं हैं और आप राजनीतिक विश्लेषक
बन गयी, टीवी सीरियल में ठुमके लगाने वाली अब चुनावी विश्लेषक बन गयी '.
हिमाचल
प्रदेश में एक चुनावी रैली के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी
ने शशी थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर के बारे में एक टिपण्णी की, "क्या तुमने
कभी 50-करोड़ रुपये की प्रेमिका को देखा है?"
उत्तर प्रदेश के सपा
के मुखिया मुलायम सिंह यादव बाराबंकी में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित
करते हुए कहा की " समृद्ध वर्गों से आयी महिलाओं को जीवन में प्रगति करने
का मौका मिलता है, लेकिन याद रखें आप ग्रामीण महिलाओं को एक भी मौका नहीं
मिलता है क्योंकि आप आकर्षक नहीं हैं.''
जया बच्चन ने जब
महाराष्ट्र में मराठियों से हिंदी में बात न करने के लिए माफ़ी मांगी तो
एम्.एन.एस के नेता राज ठाकरे ने मराठी में कहा कि "गुड्डी बुढ्ढी झाली पण
अक्ल आली नहीं." (गुड्डी बुढ्ढी हो गयी है, लेकिन उम्र के साथ अक्ल नहीं
आयी है).
सुशील कुमार शिंदे ने राज्यसभा में असम में जातीय हिंसा पर
एक बहस के दौरान सपा सांसद जया बच्चन से कहा, "ध्यान से सुनो बहन, यह एक
गंभीर मामला है न कि किसी फ़िल्मी कहानी का सब्जेक्ट ."
आंध्र
प्रदेश कांग्रेस कमिटी के मुखिया बोत्सा सत्यनारायण का कहना है कि "
सिर्फ इसलिए की भारत आधी रात को स्वतंत्र हुआ था इसका ये मतलब नहीं की
औरतों को रात में घूमने की आजादी मिली है, बल्कि उन्हें यह देखना और समझना
चाहिये की वे रात को उस बस में न चढ़े जिसमे कम यात्री सफ़र कर रहे हों,"
जब देश में ऐसी घटिया सोच के लोग हम पर राज करेंगे ( कर
रहे हैं ) तो ये हमारे देश को कहाँ लेकर जायेंगे ये सोचने की बात है, और
अगर नहीं भी सोचेंगे तो क्या होगा, ज्यादा से ज्यादा इस लिस्ट में कुछ नाम
और जुड़ जायेंगे, और में इसी तरह कुछ नाम और जोड़कर एक और आर्टिकल लिखूंगा
और आप इसे पढ़कर मंद ही मंद मुस्कुरा रहे होंगे हैं न ?
My Blog is an sincere effort to share my thoughts with readers on the current social issues especially, topics related to the present Indian Political System and the government.
Saturday, January 5, 2013
अपनी गलतियों को क्यों नहीं मानते - ये नेता
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आप का इम्तहान इस साल
आज के दैनिक
भास्कर के मैगज़ीन सेक्शन "रसरंग" में आम आदमी पार्टी की गतिविधियों और
चुनावी साल में अरविन्द केजरीवाल की तैयारी के बारे में विस्तृत रिपोर्ट
छपी है।
अरविन्द केजरीवाल का कहना है "शासन हमारा होगा, राज जनता का"।
स्रोत : दैनिक भास्कर
अरविन्द केजरीवाल का कहना है "शासन हमारा होगा, राज जनता का"।
स्रोत : दैनिक भास्कर
Thursday, January 3, 2013
शर्म आती है इन पर ... पर इन्हें रत्ती भर फर्क नहीं पड़ता ..
कल राजस्थान का दैनिक अखबार राजस्थान पत्रिका पढ़ा , जिसमे अजमेर एस पी ,
राजेश मीणI के घर एसीबी का छापा पड़ा। उन पर आरोप है की उन्होंने अपने एक
सहयोगी रामदेव के साथ जिले के थानों से वसूली करते थे।
पढ़कर एक ही बात घूम घूम कर कौंध रही थी कि हमारी व्यवस्था को क्या हो गया है , न कोई पद की गरिमा, न समाज में बदनाम होने का डर और अंतरात्मा की तो बात ही छोड़ दीजिये, वो तो पता नहीं कब रिश्वत के पैसों तले दब कर मर गयी। और तो और आज के अखबार से पता चला कि इन जनाब को इस गणतंत्र दिवस पर पुलिस पदक से सम्मानित्त भी किया जा सकता था .
ये वाकई गंभीर विषय की बात है जहां देश में पिछले कुछ एक दो सालों से भ्रष्टाचार के विरूद्ध आन्दोलन चल रहा हो , और देश की संसद में जन लोकपाल को लाने की उहापोह चल रही हो वहां ऐसे कृत्य यही दर्शाते है कि हम इन सब से परे है और हमारा कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता. इनके चेहरे की मुस्कान तो यही दर्शाती है।
आखिर क्या कारण है कि ऐसे कृत्य नित नए दिन उजाग्कार होतें है और बिना किसी भैय के किये जा रहे हो, चाहे वो पुलिस वाले हों, या फिर किसी सरकारी कार्यालय के बाबू या अफसर हों या फिर हमारे नेता।
क्या ये हमारी मौजूदा व्यवस्था पर सवाल खड़े नहीं करतें ?
क्यों दोषियों के खिलाफ सजा नहीं होती, बस ससपेंड कर अपनी जवाबदारी का लोहा मनवा लेते है ?
क्यों हम एक सभ्य समाज के एक सभ्य नागरिक होते हुए भी इन छोटी कार्यवाई से संतुष्ट हो जाते है ?
क्यों हम सब जानते हुए भी अनजान से बने हुए दिखाई देते है?
क्यों हम इन सब की बे सिर-पैर की बातों को अनसुना कर अपने विवेक का प्रदर्शन करते है ? क्या आपका विवेक इतना गिर गया है?
सवाल कई है पर जवाब सिर्फ एक !!!
हम सब नपुंसकता के शिकार है, हमारी बर्दाश्त करने की हद्द काफी बढ़ गयी है, और तभी ये सब हमारी इस नपुंसकता को पहचान कर अपना काम बड़े मज़े और बिना किसी भय के देश में करते हुए पाए जातें है जो सर्वत्र व्याप्त है।
किसी को भी देश की चिंता नहीं, बस अपना घर ठीक चल रहा है न, देश के हित के बारे में सोचने के लिए कई बेवक़ूफ़ बैठे हैं. हैं न ? उदहारण के तौर पर आप स्वयं ही इसका अवलोकन करें : गणतंत्र दिवस के मौके पर सुबह - सुबह अपने पार्क या स्कूल या कॉलेज या सरकारी भवनो में आयोजित कार्यक्रमों में जाने से आलस आता है , यही हाल स्वतंत्रता दिवस का भी है , जोर जोर से देशभक्ति के गाने लगा कर और एक-दो देशभक्ति की फिल्में देखकर आप देशभक्त नहीं बन जाते।
अपितु सामान्यतः ये ही देखा और कहते हुए सुना जा सकता है की सरकारी अवकाश का दिन है ज़रा मौज मस्ती, या फिर परिवार के साथ मल्टीप्लेक्स में सिनेमा या फिर रिश्तेदारों के यहाँ ही हो आयें फिर कल तो जाना ही है ऑफिस? ये बड़े शर्म की बात है जब हम खुद ही अपने देश के पर्व के बारे में ऐसी सोच रखतें हो तो फिर हम इन लोगों को क्यों दोष देते है ?
जब देश के लोगों की सोच इतनी गिरी हुई हो सकती है तो आप खुद ही अंदाज़ा लगाइए की विश्व में हमारी प्रतिष्ठा को कितना गहरा धक्का लगेगा। जब हमारे घर में ही घुन्न पैदा होकर देश को खोखला कर रहे हों तो बाहरी ताकतों को दोष क्यों देना.
कभी कभी तो ऐसा लगता है की हम सबने, इन विरोधी ताकतों के समक्ष समर्पण कर दिया है और या तो फिर हम सब भी इन जैसे ही बन गए है. आज तक क्या हमने, अपने आप, स्वयं ही, कभी अपने शरीर के किसी भाग को नुक्सान पहुंचाया है ? नहीं न ? तो फिर खुद अपराध बोध से ग्रसित हम किसी और पे निशान कैसे साध सकतें हैं ये सोचने की बात है ?
समय आ गया है जब हम सबको अपने अन्दर झाँक कर, पूरी सच्चाई से, अपने विवेक से काम लेना होगा और अपने व्यक्तित्व को उठाना होगा तभी हम एक आदर्श समाज , आदर्श व्यवस्था , इमानदार पुलिस , इमानदार नौकरशाह , और एक इमानदार नेता की कल्पना कर सकतें है अन्यथा आये दिन हमें अपनी सोच का प्रतिबिम्ब अखबारों के मुखपृष्ठ पर छपा हुआ मिलेगा जैसे :
दिल्ली में चलती बस में गैंग रेप , देश में एक लाख बीस करोड़ का कोयला घोटाला, अजमेर एस पी रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया, संसद भवन में नोट लहराए गए , अमुक पार्टी का नेता सेक्स काण्ड में शामिल ... इत्यादि ... इत्यादि .
क्या आपको शर्म नहीं आती, और अगर आती है तो फिर इन्हें फर्क क्यूँ नहीं पड़ता ???
पढ़कर एक ही बात घूम घूम कर कौंध रही थी कि हमारी व्यवस्था को क्या हो गया है , न कोई पद की गरिमा, न समाज में बदनाम होने का डर और अंतरात्मा की तो बात ही छोड़ दीजिये, वो तो पता नहीं कब रिश्वत के पैसों तले दब कर मर गयी। और तो और आज के अखबार से पता चला कि इन जनाब को इस गणतंत्र दिवस पर पुलिस पदक से सम्मानित्त भी किया जा सकता था .
ये वाकई गंभीर विषय की बात है जहां देश में पिछले कुछ एक दो सालों से भ्रष्टाचार के विरूद्ध आन्दोलन चल रहा हो , और देश की संसद में जन लोकपाल को लाने की उहापोह चल रही हो वहां ऐसे कृत्य यही दर्शाते है कि हम इन सब से परे है और हमारा कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता. इनके चेहरे की मुस्कान तो यही दर्शाती है।
आखिर क्या कारण है कि ऐसे कृत्य नित नए दिन उजाग्कार होतें है और बिना किसी भैय के किये जा रहे हो, चाहे वो पुलिस वाले हों, या फिर किसी सरकारी कार्यालय के बाबू या अफसर हों या फिर हमारे नेता।
क्या ये हमारी मौजूदा व्यवस्था पर सवाल खड़े नहीं करतें ?
क्यों दोषियों के खिलाफ सजा नहीं होती, बस ससपेंड कर अपनी जवाबदारी का लोहा मनवा लेते है ?
क्यों हम एक सभ्य समाज के एक सभ्य नागरिक होते हुए भी इन छोटी कार्यवाई से संतुष्ट हो जाते है ?
क्यों हम सब जानते हुए भी अनजान से बने हुए दिखाई देते है?
क्यों हम इन सब की बे सिर-पैर की बातों को अनसुना कर अपने विवेक का प्रदर्शन करते है ? क्या आपका विवेक इतना गिर गया है?
सवाल कई है पर जवाब सिर्फ एक !!!
हम सब नपुंसकता के शिकार है, हमारी बर्दाश्त करने की हद्द काफी बढ़ गयी है, और तभी ये सब हमारी इस नपुंसकता को पहचान कर अपना काम बड़े मज़े और बिना किसी भय के देश में करते हुए पाए जातें है जो सर्वत्र व्याप्त है।
किसी को भी देश की चिंता नहीं, बस अपना घर ठीक चल रहा है न, देश के हित के बारे में सोचने के लिए कई बेवक़ूफ़ बैठे हैं. हैं न ? उदहारण के तौर पर आप स्वयं ही इसका अवलोकन करें : गणतंत्र दिवस के मौके पर सुबह - सुबह अपने पार्क या स्कूल या कॉलेज या सरकारी भवनो में आयोजित कार्यक्रमों में जाने से आलस आता है , यही हाल स्वतंत्रता दिवस का भी है , जोर जोर से देशभक्ति के गाने लगा कर और एक-दो देशभक्ति की फिल्में देखकर आप देशभक्त नहीं बन जाते।
अपितु सामान्यतः ये ही देखा और कहते हुए सुना जा सकता है की सरकारी अवकाश का दिन है ज़रा मौज मस्ती, या फिर परिवार के साथ मल्टीप्लेक्स में सिनेमा या फिर रिश्तेदारों के यहाँ ही हो आयें फिर कल तो जाना ही है ऑफिस? ये बड़े शर्म की बात है जब हम खुद ही अपने देश के पर्व के बारे में ऐसी सोच रखतें हो तो फिर हम इन लोगों को क्यों दोष देते है ?
जब देश के लोगों की सोच इतनी गिरी हुई हो सकती है तो आप खुद ही अंदाज़ा लगाइए की विश्व में हमारी प्रतिष्ठा को कितना गहरा धक्का लगेगा। जब हमारे घर में ही घुन्न पैदा होकर देश को खोखला कर रहे हों तो बाहरी ताकतों को दोष क्यों देना.
कभी कभी तो ऐसा लगता है की हम सबने, इन विरोधी ताकतों के समक्ष समर्पण कर दिया है और या तो फिर हम सब भी इन जैसे ही बन गए है. आज तक क्या हमने, अपने आप, स्वयं ही, कभी अपने शरीर के किसी भाग को नुक्सान पहुंचाया है ? नहीं न ? तो फिर खुद अपराध बोध से ग्रसित हम किसी और पे निशान कैसे साध सकतें हैं ये सोचने की बात है ?
समय आ गया है जब हम सबको अपने अन्दर झाँक कर, पूरी सच्चाई से, अपने विवेक से काम लेना होगा और अपने व्यक्तित्व को उठाना होगा तभी हम एक आदर्श समाज , आदर्श व्यवस्था , इमानदार पुलिस , इमानदार नौकरशाह , और एक इमानदार नेता की कल्पना कर सकतें है अन्यथा आये दिन हमें अपनी सोच का प्रतिबिम्ब अखबारों के मुखपृष्ठ पर छपा हुआ मिलेगा जैसे :
दिल्ली में चलती बस में गैंग रेप , देश में एक लाख बीस करोड़ का कोयला घोटाला, अजमेर एस पी रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया, संसद भवन में नोट लहराए गए , अमुक पार्टी का नेता सेक्स काण्ड में शामिल ... इत्यादि ... इत्यादि .
क्या आपको शर्म नहीं आती, और अगर आती है तो फिर इन्हें फर्क क्यूँ नहीं पड़ता ???
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