Thursday, January 3, 2013

शर्म आती है इन पर ... पर इन्हें रत्ती भर फर्क नहीं पड़ता ..

कल राजस्थान का दैनिक अखबार राजस्थान पत्रिका पढ़ा , जिसमे अजमेर एस पी , राजेश मीणI के घर एसीबी का छापा पड़ा। उन पर आरोप है की उन्होंने अपने एक सहयोगी रामदेव के साथ जिले के  थानों से वसूली करते थे।

























पढ़कर एक ही बात घूम घूम कर कौंध रही थी कि हमारी व्यवस्था को क्या हो गया है , न कोई पद की गरिमा, न समाज में बदनाम होने का डर और अंतरात्मा की तो बात ही छोड़ दीजिये, वो तो पता नहीं कब रिश्वत के पैसों तले दब कर मर गयी। और तो और आज के अखबार से पता चला कि इन जनाब को इस गणतंत्र दिवस पर पुलिस पदक से सम्मानित्त भी किया जा सकता था .

ये वाकई गंभीर विषय की बात है जहां देश में पिछले कुछ एक दो सालों से भ्रष्टाचार के विरूद्ध आन्दोलन चल रहा हो , और देश की संसद में जन लोकपाल को लाने की उहापोह चल रही हो वहां ऐसे कृत्य यही दर्शाते है कि हम इन सब से परे है और हमारा कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता. इनके चेहरे की मुस्कान तो यही दर्शाती है।

आखिर क्या कारण है कि ऐसे कृत्य नित नए दिन उजाग्कार होतें है और बिना किसी भैय के किये जा रहे हो, चाहे वो पुलिस वाले हों, या फिर किसी सरकारी कार्यालय के बाबू या अफसर हों या फिर हमारे नेता।


क्या ये हमारी मौजूदा व्यवस्था पर सवाल खड़े नहीं करतें ?

क्यों दोषियों के खिलाफ सजा नहीं होती, बस ससपेंड कर अपनी जवाबदारी का लोहा मनवा लेते है ?

क्यों हम एक सभ्य समाज के एक सभ्य नागरिक होते हुए भी इन छोटी कार्यवाई से संतुष्ट हो जाते है ?

क्यों हम सब जानते हुए भी अनजान से बने हुए दिखाई देते है?

क्यों हम इन सब की बे सिर-पैर की बातों को अनसुना कर अपने विवेक का प्रदर्शन करते है ? क्या आपका विवेक इतना गिर गया है?

सवाल कई है पर जवाब सिर्फ एक !!!

हम सब नपुंसकता के शिकार है, हमारी बर्दाश्त करने की हद्द काफी बढ़ गयी है, और तभी ये सब हमारी इस नपुंसकता को पहचान कर अपना काम बड़े मज़े और बिना किसी भय के देश में करते हुए पाए जातें है जो सर्वत्र व्याप्त है।

किसी को भी देश की चिंता नहीं, बस अपना घर ठीक चल रहा है न, देश के हित के बारे में सोचने के लिए कई बेवक़ूफ़ बैठे हैं. हैं न ? उदहारण के तौर पर आप स्वयं ही इसका अवलोकन करें : गणतंत्र दिवस के मौके पर सुबह - सुबह अपने पार्क या स्कूल या कॉलेज या सरकारी भवनो में आयोजित कार्यक्रमों में जाने से आलस आता है , यही हाल स्वतंत्रता दिवस का भी है , जोर जोर से देशभक्ति के गाने लगा कर और एक-दो देशभक्ति की फिल्में देखकर आप देशभक्त नहीं बन जाते।

अपितु सामान्यतः ये ही देखा और कहते हुए सुना जा सकता है की सरकारी अवकाश का दिन है ज़रा मौज मस्ती, या फिर परिवार के साथ मल्टीप्लेक्स में सिनेमा या फिर रिश्तेदारों के यहाँ ही हो आयें फिर कल तो जाना ही है ऑफिस? ये बड़े शर्म की बात है जब हम खुद ही अपने देश के पर्व के बारे में ऐसी सोच रखतें हो तो फिर हम इन लोगों को क्यों दोष देते है ?  

जब देश के लोगों की सोच इतनी गिरी हुई हो सकती है तो आप खुद ही अंदाज़ा लगाइए की विश्व में हमारी प्रतिष्ठा को कितना गहरा धक्का लगेगा। जब हमारे घर में ही घुन्न पैदा होकर देश को खोखला कर रहे हों तो बाहरी ताकतों को दोष क्यों देना.

कभी कभी तो ऐसा लगता है की हम सबने, इन विरोधी ताकतों के समक्ष समर्पण कर दिया है और या तो फिर हम सब भी इन जैसे ही बन गए है. आज तक क्या हमने, अपने आप, स्वयं ही, कभी अपने शरीर के किसी भाग को नुक्सान पहुंचाया है ? नहीं न ? तो फिर खुद अपराध बोध से ग्रसित हम किसी और पे निशान कैसे साध सकतें हैं ये सोचने की बात है ?

समय आ गया है जब हम सबको अपने अन्दर झाँक कर, पूरी सच्चाई से, अपने विवेक से काम लेना होगा और अपने व्यक्तित्व को उठाना होगा तभी हम एक आदर्श समाज , आदर्श व्यवस्था , इमानदार पुलिस , इमानदार नौकरशाह , और एक इमानदार नेता की कल्पना कर सकतें है अन्यथा आये दिन हमें अपनी सोच का प्रतिबिम्ब अखबारों के मुखपृष्ठ पर छपा हुआ मिलेगा जैसे :

दिल्ली में चलती बस में गैंग रेप , देश में एक लाख बीस करोड़ का कोयला घोटाला, अजमेर एस पी रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया, संसद भवन में नोट लहराए गए ,  अमुक पार्टी का नेता सेक्स काण्ड में शामिल ... इत्यादि ... इत्यादि .

क्या आपको शर्म नहीं आती, और अगर आती है तो फिर इन्हें फर्क क्यूँ नहीं पड़ता ???

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